पुण्य तिथि - 12 May, 2001

जगदीश भाई जी के प्रति

अव्यक्त बापदादा का प्यार

 

अव्यक्त बापदादा- 01.12.1983

"...जगदीश भाई से...आपने ऐसे बच्चे देखे ना! अच्छा चक्कर लगाया ना। साकार बाप का दिया हुआ विशेष वरदान, साकार में लाया। सफलता का जन्मसिद्ध अधिकार अनुभव किया न। सर्व सफलता में विशेष सफलता की निशानी कौन सी है? श्रेष्ठ सफलता है कि बापदादा दिखाई दे। आप में बाप दिखाई दे - यह है श्रेष्ठ सफलता। यही प्रत्यक्षता का साधन है। जो भी चक्कर पर निकले विशेष बाप समान अनुभूति कराना, यही सफलता की निशानी है। और आगे चल कर भी ज्यादा से ज्यादा यही आवाज़ चारों ओर फैलता जायेगा। हिम्मते बच्चे मददे बाप है ही। करावनहार करा लेता है। अच्छा- ऐसे सदा सम्पूर्ण तकदीरवान, सम्पन्न अधिकार को पाने वाले अधिकारी, सदा बाप और आप के कम्बाइन्ड रूप में रहने वाले, स्नेह के सागर में सदा समाये हुए, लकी और लवली बच्चों को, भाग्य विधाता, वरदाता का यादप्यार और नमस्ते।...’’

 

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अव्यक्त बापदादा- 22.01.1984

"...जगदीश भाई से...बापदादा के साकार पालना के पले हुए रत्नों की वैल्यु होती है। जैसे लौकिक रीति में भी पेड़ (वृक्ष) में पके हुए फलों का कितना मूल्य होता है। ऐसे साकार पालना में पले हुए अर्थात् पेड़ में पके हुए। आज ऐसी अनुभवी आत्माओं को सभी कितना प्यार से देखते हैं। पहले मिलन में ही वरदान पा लिया ना। पालना अर्थात् वृद्धि ही वरदानों से हुई ना। इसलिए सदा पालना के अनुभव का आवाज़ अनेक आत्माओं की पालना के लिए प्रेरित करते रहेंगे। सागर के भिन्न-भिन्न सम्बन्ध की लहरों में लहराने के अनुभवों की लहरों में लहराते रहेंगे। सेवा के निमित्त आदि में एकानामी के समय निमित्त बने। एकानामी के समय निमित्त बनने के कारण सेवा का फल सदा श्रेष्ठ है। समय प्रमाण सहयोगी बने इसलिए वरदान मिला। अच्छा –..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 01.10.1987

"...जगदीश भाई से...पाण्डव सदा ही प्रसिद्ध हैं। भक्ति में भी कोई पूजा होती है तो पहले गणेश की पूजा करते हैं ना। साकार में बापदादा ने इसको (जगदीश भाई को) यह टाईटल दिया। तो यह टाईटल कम नहीं है। बिना गणेश के यानी पाण्डवों के पूजा शुरू नहीं होती। शक्तियों के सहयोग के बिना पाण्डव नहीं, पाण्डवों के सेवा की उन्नति के पुरूषार्थ के बिना शक्तियों के सेवा की विजय नहीं। दोनों ही एक दो के साथी हैं। पाण्डवों को सदैव दिल से ब्रह्मा के हमशरीक साथी कहते हैं। तो ब्रह्मा बाप के हम साथी हैं! कितनी कमाल है! शक्तियों को आगे रखना - यह भी पाण्डवों की कमाल है। अगर पाण्डव शक्तियों को आगे न रखें तो शक्तियाँ क्या करेगी? यह पाण्डवों की विशेषता है। समय प्रमाण शक्तियों को आगे रखना ही पड़ता है। पाण्डव सहयोगी बन आगे रखते हैं, तब शक्तियों की महिमा होती है! पाण्डव कोई कम नहीं हैं। सिर्फ कहीं-कहीं शक्तियों का नाम प्रत्यक्ष हो जाता है, पाण्डवों का गुप्त हो जाता है। वैसे बाप भी गुप्त है। नाम तो बच्चों का होता, बाप का कहाँ होता है। तो पाण्डव सदा विजय के तिलकधारी हो। पाण्डवों के आगे टाइटल है - ‘विजयी पाण्डव'। सभी ने बहुत अच्छा किया। जैसे बापदादा चाहते हैं - प्यार-प्यार से फूँक भी लगाओ और अपना कार्य भी कर लो, ऐसे किया। अच्छी सेवा हुई। अच्छा। ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 07.11.1989

"...जगदीश भाई से...बहुत अच्छे उमंग-उत्साह से विश्व में सेवा करने का साधन अच्छा बना है। यू.एन. भी सेवा की साथी बनी हुई है। भारत सेवा वा फाउण्डेशन है। इसलिए भारत का भी विशेष सर्विसएबुल साथी (जगदीश जी) गये हुए हैं। फाउण्डेशन भारत है और प्रत्यक्षता के निमित्त विदेश। प्रत्यक्षता का आवाज दूर से भारत में नगाड़ा बनकर के आयेगा। बच्चों के वायब्रेशन आ रहे हैं। वैसे तो लंदन निवासी भी साथी हैं, आस्ट्रेलिया वाले भी विशेष सेवा के साथी हैं, अफ्रीका भी कम नहीं। सभी देशों का सहयोग अच्छा है। बापदादा देशविदेश के हर एक निमित्त बने हुए सेवाधारी बच्चों को अपनी-अपनी विशेषता प्रमाण विशेष यादप्यार दे रहे हैं। हर एक की महिमा अपनी-अपनी है। एक-एक की महिमा वर्णन करें तो कितनी हो! लेकिन बापदादा के दिल में हर एक बच्चे की विशेषता की महिमा समाई हुई है।..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 23.11.1989

"...जगदीश भाई से...विदेश का भी चक्र लगा कर बच्चे पहुँच गये हैं। (जानकी दादी, डॉक्टर निर्मला और जगदीश भाई विदेश का चक्र लगाकर आये हैं) अच्छी रिजल्ट है। और सदा ही सेवा की सफलता में वृद्धि होनी ही है। यू.एन. का भी विशेष सेवा के कार्य में सम्बन्ध है। नाम उन्हों का, काम तो आपका ही हो रहा है। आत्माओं को सहज सन्देश पहुँच जाए - यह काम आपका हो रहा है। तो वहाँ का भी प्रोग्राम अच्छा हुआ। रशिया भी रहा हुआ था, उनको भी आना ही था। बापदादा ने तो पहले ही सफलता का यादप्यार दे दिया था। भारत के एम्बसडर बन कर गये तो भारत का नाम बाला हुआ ना! चक्रवर्ती बन चक्र लगाने में मजा आता है ना! कितनी दुआयें जमा करके आये! ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 20.01.1990

"...जगदीश भाई से...निमित्त बने हुए बड़े बच्चों को देख बापदादा खुश होते है। बापदादा जानते है - दोनों ही कांफ्रेंस आवाज़ बुलंद करने वाली रही। (जगदीश भाई एथेनस तथा मास्को से कांफ्रेंस अटेंड करके वापस आये है) 'हिम्मते बच्चे, मददे बाप' का प्रत्यक्ष स्वरूप बच्चों ने दिखाया। इसलिए जो भी सेवा के लिए निमित्त बने उन सबको बापदादा मुबारक दे रहे है। अच्छा! ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 23.02.1997

"...जगदीश भाई से...दिल्ली को वरदान है और उसमें भी आदि रत्न जगदीश को वरदान है-स्थापना के कार्य में। इस बारी बापदादा ने देखा एक भी दिल्ली का सेन्टर ऐसे नहीं रहा जिसका कोई न कोई सहयोग नहीं हो। 100 से ही ज्यादा होंगे, दूर वाले स्थान की बात छोड़ो, लेकिन जो दिल्ली में थे उनमें से हर एक ने अपने खुशी से सेवा ली और प्रैक्टिकल किया तो यही सफलता का साधन है। ऐसे था ना? जगदीश से पूछते हैं। तो कहाँ भी करो, पहले सबको मिलाओ। चाहे मीटिंग करो, चाहे फोन में बात करो, समय नहीं हो तो फोन में ही मीटिंग हो सकती है। इन्होंने भी मीटिंग की, एक ही दिल्ली है ना तो दिल्ली में मीटिंग होना सहज है। लेकिन एक बात यह समझ लो कि जहाँ संगठन की शक्ति है वहाँ विजय है। बाकी विघ्न तो आने ही हैं। नहीं तो विघ्न-विनाशक नाम क्यों रखा है! विघ्न विनाशक का अर्थ क्या है? विघ्न आवे और विनाश करो। यह तो होना ही है। विघ्नों का काम है आना और आपका काम है विनाशक बनना। इसकी परवाह नहीं करो। यह खेल है। खेल में खेल और खेल देखने में तो मजा है ना। ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 03.04.1999

"...जगदीश भाई से...जगदीश भाई तथा अन्य मुख्य भाईयों से सेवा में पहला सेवा के निमित्त बनना और सेवा में सरेन्डर होना - ये आपका विशेष पार्ट है। अच्छा है चारों का अपना-अपना पार्ट है। सभी की विशेषता आपनी-अपनी है। सभी की विशेषता आवश्यक है ना। इनकी विशेषता भी आवश्यक है, आपकी भी आवश्यक है। जैसे बहुत चीजें मिला के अच्छी बन जाती हैं ना टेस्टी, तो ऐसे सभी की विशेषता मिलकर सेवा में टेस्ट आ जाती है। ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 31.01.1998

"...जगदीश भाई से...तबियत अच्छी है। अभी बहुत काम करना है। अभी पाण्डवों को मिलकर कोई नये प्लैन बनाने हैं। नवीनता के निमित्त बनना है। आदि से कोई न कोई कार्य के लिए निमित्त बनते आये हैं, सभी की विशेषता है इसलिए अभी भी और टचिंग होती रहेगी। अच्छा है दिल्ली में भी धूम मचानी है। दिल्ली का सेवाधारी पाण्डव पहला निमित्त बने हुए हो। दिल्ली से नाम बाला होगा ना। सभी के सकाश से दिल्ली से नाम बाला तो करना ही है। कोई ऐसे प्लैन बनाओ, बाम्बे, दिल्ली नई इन्वेन्शन्स निकालो। मधुबन में तो सेवायें ड्रामानुसार बढ़ती ही जाती हैं और बढ़ती जानी हैं। यह विंग्स का सेवा का प्लैन भी अच्छा चल रहा है और चलता रहेगा। जो निमित्त बनता है उसको सेवा की सफलता का शेयर मिल जाता है। इसलिए निमित्त बनते जाओ और शेयर्स जमा करते जाओ। अच्छा है जो भी चारों ओर निमित्त बनते हैं उन्हों को एक्स्ट्रा लिफ्ट मिल जाती है। स्व का पुरूषार्थ तो है लेकिन यह गिफ्ट में लिफ्ट मिलती है। विदेश वालों को भी सेवा की गिफ्ट मिलती रहती है। भारत वाले विदेश को भी सकाश दे रहे हैं। तो अच्छा है, अच्छे-अच्छे पाण्डव भी हैं, अच्छी-अच्छी शक्तियां भी हैं। सेना बहुत अच्छी सुन्दर है। बापदादा तो हर एक की विशेषता की दिल में महिमा करते रहते हैं। ऐसे है ना? ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 24.02.1998

"...जगदीश भाई से...बापदादा को दोनों तरफ की सेवा पसन्द है, अच्छा है। जगदीश बच्चे ने इन्वेन्शन अच्छी निकाली है और विदेश में यह रिट्रीट, डायलॉग किसने शुरू किया? (सभी ने मिलजुलकर किया) भारत में भी मिलजुलकर तो किया है फिर भी निमित्त बने हैं। अच्छा है हर एक को अपने हमजिन्स के संगठन में अच्छा लगता है। तो दोनों तरफ की सेवा में अनेक आत्माओं को समीप लाने का चांस मिलता है। रिजल्ट अच्छी लगती है ना? रिट्रीट की रिजल्ट अच्छी रही? और वर्गीकरण की भी रिजल्ट अच्छी है, देश-विदेश कोई न कोई नई इन्वेन्शन करते रहते हैं और करते रहेंगे। चाहे भारत में, चाहे विदेश में सेवा का उमंग अच्छा है। बापदादा देखते हैं जो सच्ची दिल से नि:स्वार्थ सेवा में आगे बढ़ते जाते हैं, उन्हों के खाते में पुण्य का खाता बहुत अच्छा जमा होता जाता है। कई बच्चों का एक है अपने पुरूषार्थ के प्रालब्ध का खाता, दूसरा है सन्तुष्ट रह सन्तुष्ट करने से दुआओं का खाता और तीसरा है यथार्थ योगयुक्त, युक्तियुक्त सेवा के रिटर्न में पुण्य का खाता जमा होता है। यह तीनों खाते बापदादा हर एक का देखते रहते हैं। ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 31.12.1998

"...जगदीश भाई से...आदि से सेवा बहुत की है। आदि से सेवा के निमित्त बने हो और इन्वेन्शन भी अच्छी-अच्छी की है। अभी देखो वर्गीकरण की रिज़ल्ट कितनी अच्छी है। इसलिए अभी फिर कोई नई इन्वेन्शन करनी है। सबका आपसे प्यार है। मुरली में नाम आता है ना तो सभी का अटेन्शन जाता है। अभी शरीर को जबरदस्ती नहीं चलाओ, अभी आराम से चलाओ। अभी यह नहीं सोचो यह करना ही है। नहीं। औरों को आप समान बनाओ। मेले की शुरूआत भी दिल्ली से ही शुरू हुई है, कांफ्रेंस भी हुई अभी नई इन्वेन्शन भी दिल्ली से शुरू हो। अच्छा। ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 15.11.1999

"...(दादी जानकी ने जगदीश भाई की याद दी) सब ठीक हो जायेगा। बहुतबहुत याद देना। फिर भी शुरू से सेवा की इन्वेन्शन में अच्छा पार्ट बजाया है। विशेषता दिखाने वालों को बाप की विशेष दुआयें मिलती हैं।..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 15.02.2000

"...तो आपकी यात्रा वीडियो में आ गई अर्थात् अमर हो गईचलती रहेगी। अच्छा है। निमित्त तो इन्वेन्शन जगदीश ने किया। ऐसे ही शुरू से वरदान है - इन्वेन्शन करने का। अभी भी इस वरदान को आगे बढ़ाते रहना। अच्छा है। एक की इन्वेन्शन से सभी तरफ उमंग-उत्साह आ गया। तो इन्वेन्शन की मुबारक हो। अच्छा।..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 16.12.2000

"...जगदीश भाई से...ठीक है ना! (ज्यादा तो आप जानते हैं) अच्छा है। अभी नेचरल साधन से ही ठीक है। सेवा तो आपने आदि से बहुत की है, (फर्ज अदा किया है अपना भाग्य बनाया है) अभी भी चाहे शरीर द्वारा ज्यादा नहीं कर सकते, लेकिन जिन आत्माओं ने जिस सेवा के निमित्त बन सेवा की इन्वेन्शन के निमित्त बने हैं, उन्हों को उस सेवा की सफलता के शेयर जमा होते हैं। जैसे प्रदर्शनी की इन्वेन्शन हुई, तो उस द्वारा क्वान्टिटी को सन्देश मिल रहा है, मेला हुआ यह भी क्वान्टिटी की सेवा, वी.आई.पी आता है तो कोई कोई, लेकिन कांफ्रेंस हुई तो कांफ्रेंस की सेवा से स्पीच की आकर्षण से वी.आई.पी. आते हैं उन्हों की सेवा होती है, लेकिन उसमें भी कोई- कोई। अभी जो वर्गाकरण की सेवा हो रही है, इसमें भिन्न-भिन्न वर्ग के वी.आई.पी. का आना हो रहा है और वर्गाकरण की सेवा से नजदीक सहयोग में भी आते हैं, क्यों? एक तो 15 वर्ग हैं, विस्तार है। तो 15 वर्ग ही अलग-अलग सेवा कर रहे हैं, अलग- अलग वी.आई.पी. को इन्वाइट करते हैं और दूसरा 2-3 दिन रहने का साधन मिलता है। कांफ्रेंस में आते हैं लेकिन वी.आई.पी. जो हैं वह भाषण करके मैजारिटी चले जाते हैं फिर भी साधन है, आकर्षण है, वी.आई.पी को स्पीच करने की। तो जिन्होंने भी जो भी इन्वेन्शन की है, निमित्त बने हैं उनको उनकी सेवा का शेयर मिलता है। इसलिए आप फिकर नहीं करो कि मैं सेवा नहीं कर सकता, नहीं, सेवा हो रही है। भिन्न-भिन्न सेवा के निमित्त बने ना। यह (रमेश भाई) प्रदर्शनी के बने, वह (निर्वैर भाई) सीढ़ी के बने, कोई न कोई सेवा के निमित्त बने, कोई कांफ्रेंस के निमित्त बनते हैं और दादियाँ तो सभी में हैं। आप विंग्स के निमित्त हैं। दादियों की भी छत्रछाया है। हाँ विदेश में भी सेवा की। तो फाउण्डेशन डालने में मेहनत होती है। इसलिए फिकर नहीं करो आपका शेयर इकठ्ठा हो रहा है। थोड़ा फ़िकर है। (बाबा को प्रत्यक्ष नहीं किया है, यह फ़िकर है) यह वायुमण्डल से हो जायेगा। समय इन्तजार कर रहा है, पर्दा खुलने के लिए। अभी इस वर्ष में फरिश्ता रूप बन जाएँ, चारों ओर साक्षात्कार शुरू हो जायेंगे। देखेंगे यह कौन आया, यह ब्रह्मा बाबा को जैसे पहले-पहले देखा, ऐसे ब्रह्मा बाप के साथ-साथ आप पाण्डव शक्तियों को देखेंगे। ढ़ूँढ़ेंगे यह कौन हैं, कहाँ हैं। पहली-पहली आत्मा निकली हो दिल्ली सेवा में। और आते ही सेवा शुरू कर दी, पहला-पहला किताब याद है कौन-सा लिखा था? कुम्भ के मेले के लिए लिखा था। तो आते ही सेवा की है ना! इसलिए आपको फल मिलेगा। तो करो डांस। गणपति डांस, करो। (जगदीश भाई ने गणपति डांस की) अच्छा है, निमित्त सेवा है लेकिन भाग्य की लकीर लम्बी खींच रही है। (तनजानिया से जगदीश भाई के लिए नेचरोपैथी की डाक्टर आई है) अच्छा है निमित्त बनने का गोल्डन चांस मिला है। ऐसे अनुभव करती हो? ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 31.12.2000

"...जगदीश भाई से...ठीक है। (चलती का नाम गाड़ी है) जीवन को बाप हवाले तो आदि से कर ही लिया है। जीवन में जब तक भी है तक तक सेवा तो कर रहे हो और करते ही रहेंगे। जमा हो रहा है। अभी बापदादा जो भी महारथी हैं, सभी महारथी बैठे हैं ना, उन महारथियों को कौन सी सेवा करनी है, वह बताते हैं। सेवायें तो सब कर रहे हैं और आप सबने तो अभी तक जो दूसरे सेवायें कर रहे हैं, वह बहुत कर ली है, अभी तो दूसरे भी आप लोगों द्वारा बहुत होशियार हो गये हैं, अभी महारथियों को और नई सेवा करनी चाहिए। ठीक है ना! अभी आप लोगों को जो सेवा करनी है उनमें इनकी (कानों की) जरूरत नहीं है। (कम सुन रहा है) अब आप लोगों की सेवा है, वायब्रेशन्स द्वारा आत्माओं को समीप लाना। आपस में तो होना ही है। आपसी स्नेह औरों को वायब्रेशन द्वारा खींचेगा। अभी आप लोगों को यह साधारण सेवा करने की आवश्यकता नहीं है। भाषण करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन आप लोग हर एक आत्मा को ऐसी भासना दो जो वह समझें कि हमको कुछ मिला। ब्राह्मण परिवार में भी आपके संगठन के वायब्रेशन द्वारा निर्विघ्न बनाना है। मन्सा सेवा की विधि को और तीव्र करो। वाचा वाले बहुत हैं। मन्सा द्वारा कोई न कोई शक्ति का अनुभव हो। वह समझें कि इन आत्माओं द्वारा यह यह शक्ति का अनुभव हुआ। चाहे शान्ति का हो, चाहे खुशी का हो, चाहे सुख का हो, चाहे अपने-पन का। तो जो भी अपने को महारथी समझते हैं उन्हों को अभी यह सेवा करनी है। सभी अपने को महारथी समझते हो? महारथी हैं? अच्छा है। (जगदीश भाई ने एक गीत गाया) अभी औरों को भी आप द्वारा ऐसा अनुभव हो। बढ़ता जायेगा। इससे ही अभी ऐसी अनुभूति शुरू करेंगे तब साक्षात्कार शुरू हो जायेगा। ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 31.12.2000

"...जगदीश भाई से...शरीर को चला रहे हैं ना, चलाते चलो। अच्छा। लाइट रहना ही अच्छा है। सभी पाण्डव भी मददगार हैं। पाण्डवों का भी प्यार है, दादियों का भी प्यार है। (पाण्डवों से भी ज्यादा दादियों का है) कोई ऐसी घड़ी आ जायेगी जो असम्भव से सम्भव हो जायेगा। अच्छा। सभी ने सुना ना! (जगदीश भाई की सेवा में दिल्ली की साधना बहन हैं, उनसे बापदादा मिल रहे हैं):- सेवा का भाग्य मिलना भी बहुत बड़ी बात है, दिल से सेवा करते चलो। कर रही हो, करते चलो।..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 18.01.2001

"...जगदीश भाई से...जगदम्बा माँ का स्लोगन याद है ना - हुक्मी हुक्म चलाए रहा। तो आपका भी अभी यही अनुभव है ना। करावनहार कराए रहा है। चलाने वाला चला रहा है, बाकी अच्छा है यह सभी आदि रत्नों ने, आप हो सेवा के आदि रत्न, यह (दादियाँ) हैं स्थापना के आदि रत्न। यह पाण्डव भी सेवा के आदि रत्न हैं। (आज बाबा के कमरे में गया तो वह यादें आ गई, यहाँ होते भी नहीं था, आँसू भर आये) इस याद से और ही प्रत्यक्ष रूप में एक तो प्यार बढ़ता है, दिल का प्यार बाहर निकलता है और दूसरा याद में बाप के समानता की हिम्मत भी आती है। अच्छा हुआ। लेकिन बापदादा कह रहे थे कि जो भी सेवा में आदि रत्न हैं वा स्थापना के आदि रत्न हैं दोनों ने सेवा बहुत अच्छी की है, निमित्त बने हैं। सहन भी किया और प्यार भी मिला। अच्छा किया क्योंकि उस समय हिम्मत रखने वाले थोड़े थे लेकिन हिम्मत रखके सहयोगी बनें, वह सहयोग की जो मार्क्स हैं वह जमा हैं। जमा खाता अच्छा है। एक का पद्मगुणा जमा होता है ना। तो जिन्होंने भी जो कुछ दिल से और शक्तिशाली होके किया है, उन्हों का एक का लाख गुणा नहीं लेकिन पद्मगुणा जमा है। आप सबका भी जमा है, इन्हों का भी जमा है। ..."

 

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अव्यक्त बापदादा- 04.02.2001

"...जगदीश भाई से...सभी ठीक है। सबसे अच्छी बात है अपने को शरीर सहित बाप के हवाले कर लिया। वैसे तो बाप को अपना सब दे दिया है। दे दिया है ना कि देना है? आप लोगों ने, निमित्त आत्माओं ने तो दिया है, तब आपको साकार रूप में फालो कर रहे हैं। साकार रूप में महारथियों को देख सबको शक्ति मिलती है। तो यह सारा ग्रुप क्या है? शक्ति का स्त्रोत्र है। है ना! (दादी जानकी कह रही हैं चलाने वाला बहुत रमजबाज है) रमजबाज नहीं होता तो इतनी वृद्धि कैसे होती। बाप कहते हैं चलने वाले भी बाप से ज्यादा चतुरसुजान हैं। अच्छा - सभी सदा एक शब्द दिल से गाते रहते - ‘‘मेरा बाबा’’। यह गीत गाना सबको आता है ना! मेरा बाबा, यह गीत गाना आता है? सहज है ना! मेरा कहा और अपना बना लिया। बाप कहते हैं, बच्चे बाप से भी होशियार हैं। क्यों? भगवान को बाँध लिया है। (दादी जानकी से) बाँधा है ना! तो बाँधने वाले शक्तिशाली हुए या बँधने वाला? कौन शक्तिशाली हुए? बाँधने वाले ने सिर्फ तरीका आपको सुना दिया कि ऐसे बाँधो तो बँध जाऊँगा। अच्छा। ओम् शान्ति। ..."

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